सालो बाद निकले जब उस मोहल्ले कूचे से,
जहां मिलते थे छुपकर हम एक दूजे से,
सब कुछ बड़ा वीरान सा दिखा,
प्यार मोहब्बत सबका रंग हो गया है फीका,
वो पेड़ भी दिखे उदास और मुरझाए,
जिसके नीचे बैठ हमने ना जाने कितने प्यार भरे वक़्त थे बिताए,
वो प्यार भरी सुहानी , शीतल हवाएं ,
जिसके ठंडे अहसास में हमने ना जाने कितनी कस्मे थी खाए,
वो हवा भी अब कुछ और ही रुख मोड़ गई,
उसने शीतलता छोड़, बड़ी कठोर हो गई,
वो गली मोहल्ले बड़े सुनसान हो गए,
ना जाने सारे प्यार के रंग कहा खो गए,
हमारे प्यार के रंगो का जहा था अंबार सा,
अब वो मोहल्ला ही लग रहा बेकार सा,
वो आम की डाली पर लिखा नाम हमारा,
ना जाने कैसे खो गया,
छूटा हमारा साथ जो, रूठा हमारा प्यार जो,
वो गली मोहल्ले भी अनजाने से हो गए,
अब तो सब बड़े अधूरे और वीराने से हो गए,
ये गली मोहल्ले, बहुत सुनसान से हो गए।
स्वरचित - अंबिका दूबे
जहां मिलते थे छुपकर हम एक दूजे से,
सब कुछ बड़ा वीरान सा दिखा,
प्यार मोहब्बत सबका रंग हो गया है फीका,
वो पेड़ भी दिखे उदास और मुरझाए,
जिसके नीचे बैठ हमने ना जाने कितने प्यार भरे वक़्त थे बिताए,
वो प्यार भरी सुहानी , शीतल हवाएं ,
जिसके ठंडे अहसास में हमने ना जाने कितनी कस्मे थी खाए,
वो हवा भी अब कुछ और ही रुख मोड़ गई,
उसने शीतलता छोड़, बड़ी कठोर हो गई,
वो गली मोहल्ले बड़े सुनसान हो गए,
ना जाने सारे प्यार के रंग कहा खो गए,
हमारे प्यार के रंगो का जहा था अंबार सा,
अब वो मोहल्ला ही लग रहा बेकार सा,
वो आम की डाली पर लिखा नाम हमारा,
ना जाने कैसे खो गया,
छूटा हमारा साथ जो, रूठा हमारा प्यार जो,
वो गली मोहल्ले भी अनजाने से हो गए,
अब तो सब बड़े अधूरे और वीराने से हो गए,
ये गली मोहल्ले, बहुत सुनसान से हो गए।
स्वरचित - अंबिका दूबे
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