कल तक जहा होता था हल्ला गुल्ला और शोर,
आज उस गली मोहल्लों में छाया सन्नाटा घनघोर,
फेरीवालों की गूजती आवाजे खो गई,
ज़िंदगियां अचानक से तंग सी हो गई,
बच्चो के कांधे पर का स्कूल बैग ,
छुप गया संदूक में,
गरम जलेबी, समोसो की खुशबू,
उड़ गई सन्नाटे की धूल में,
फेरीवालों की सुबह शाम चिल्लाती आवाजें,
जो दिन भर सब्जियों से रहते थे ठेलो को सजाते,
ना जाने कहां खो गए,
सारे मोहल्ले बड़े शान्त से हो गए,
सड़क पर चलती सहेलियों की अठखेलियां,
युगल लडको की छुपी नज़रों की छिछोरिया,
सतरंगी दुपट्टों की रंगीन दुकानें,
चूड़ी, बिंदी , लाली खरीदती सुहागनें,
सब तो खो गए, दुकानें सारे जो बंद हो गए,
सारे मोहल्ले बड़े शान्त से हो गए,
कैसा ये आया महामारी का काल है,
हर इंसान घरों में कैद होकर पड़ा बेहाल है,
इस अदृश्य दुश्मन ने मचाया ऐसा कोहराम है,
की सजा सवरा मोहल्ला मेरा आज सुनसान है,
कल तक जहा होता था हल्ला गुल्ला और शोर,
आज उस गली मोहल्लों में छाया सन्नाटा घनघोर,
स्वरचित - अंबिका दूबे
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