इंसानियत कहां गयी
कैसा ये छाया महामारी का महाकाल है,
कलयुग ने धरा रूप अपना विकराल है,
छोटे छोटे बच्चे भूख से तड़प रहे,
लोग भोजन की तलाश में सड़कों पर भटक रहे,
मंदिर, मस्जिद गुरुद्वारों के बंद है दरवाजे,
कहां गए वो करोड़ों, जो इन्हें चढ़ावा रूप में थे चढ़ाते,
भूल गया इंसान , मानव रूप में ही तो, धरती पर आए थे इसा, पैगम्बर और प्रभु श्री राम,
मानव का मानव सेवा ही तो सब धर्मो में है महान,
फ़िर भी कलयुग में इंसान बना इंसानों के लिए शैतान,
भुखा बच्चा रोता गलियों में, मंदिर की नालियों में दूध बहाता इंसान,
गौ पूजा की जगह गौ हत्या ने ले डाला,
दूध की जगह पीता है इंसान, रक्त का प्याला,
अरे अंधो जागो उठो कुछ तो समझो कुदरत का इशारा,
बन जाओ तुम एक आदर्श मानव ,तो सम्हल जाए अब भी विनाश इस संसार का सारा,
ये महामारी ये संदेश है लायी, कि ओ इंसान क्यों नहीं तूने इंसानियत निभाई,
भगवान की बनाई प्रकृति,जीव जंतु, सबके साथ क्यों की तूने बेवफ़ाई,
बस अब रुक जा, थमकर, सम्हलकर बढ़ा अब कदम,
क्युकी हर कदम पर खड़ी है मौत, ढाने को दुनिया पर सितम, ढाने को दुनिया पर सितम।
स्वरचित अंबिका दुबे(Ambika Dubey)
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