Wednesday, 7 August 2019

सपने और ख्वाहिशें

आजकल ना जाने क्यों मन मचलता है,
लिए अधूरी  ख्वाहिशें एक नए जोश से तड़पता है
दिल चाहता है कि सिमट जाऊ साजन की बाहों में,
जैसे अंधेरा सिमटता है पूनम की रात में,
जैसे कृष्ण की छवि दिखे राधा की हर बात में,
जैसे सूर्यमुखी  खिल जाए  सूरज की तपन में,
बस ऐसे ही मैं चाहू रिस जाना साजन के  मन मे,
बहुत याद करती हूं साजन को  तन्हाइयों में,
समझा ही नही पाती अपने ख्वाहिशों को,
दिमाक कहता है अभी करना बहुत काम है,
इतनी जल्दी पाना आसान नही प्यार का मुक़ाम है,
लेकिन दिल कहता है, कब तक यु ही तड़पेगी और तड़पायेगी, तुझे तो ये भी पता नही की तेरी मंजिल कब आएगी,
बीत ना जाये यु ही उम्र मंजिल के इंतज़ार में,
जी ले जी भरकर जो भी वक़्त मिले, अपने प्यारे से प्यार के साथ उसके ही प्यार में।
                                                                                   
                                                                                                    - अम्बिका दूबे

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