आज हवाओं में एक उमस , एक घुटन सी मची है,
ना जाने ये हवा इतनी बेरुखी सी क्यों है?
मैंने पूछा - ऐ हवा तुम्हारा तो काम ही है लोगो को जीवन देना....
ना जाने ये हवा इतनी बेरुखी सी क्यों है?
मैंने पूछा - ऐ हवा तुम्हारा तो काम ही है लोगो को जीवन देना....
फिर तुम में इतनी बेरूखी क्यों है?
छोड़कर शीतलता इतनी घुटन सी क्यों मची है?
फिर हवा ने एक तड़प भरी ..आह.. के साथ अपना दर्द सुनाया....
जीव जंतु , पेड़ पौधे मुझपर ही टिका हर जीवन का आधार है,
शीतलता और पवित्रता ही मेरा स्वरूप, बाकी ना मेरा कोई रूप ना आकार है।
चलु थोड़ी गर्म हवा बनकर तो "लू" कहलाती हु,
हो जाओ थोड़ी तेज़ तो आंधी बन जाती हूं,
खेलते बच्चे , मुस्कुराते कवल जोड़ो के लिए सुहानी हवा,
तपती दुपहरिया में दु गर्मी से राहत, तो ठंडी हवा का झोंका कहलाती हु,
फिर क्यों मेरी पवित्रता में जहर घोल रहे हो तुम इंसान?
प्रदूषण जैसी बीमारियां देकर मुझे ,
क्यों कर रहे हो अपना नुकसान?
अब हवाओं में शीतलता नही, बीमारी महामारी घुलती जा रही हैं,
ये गाड़िया ये फैक्ट्रियां, सब मेरा अस्तित्व मिटा रही है,
मै तो पहाड़ो, पेड़ो,नदिया,घाटियो से अमृत रूपी हवा लाती थी,
जो तुम सबमे एक स्फुर्ति और चेतना जगाती थी,
अब तो तुम्हारी फैलाई गंदगी ने, तुम्हारे प्रदूषित किये हुए वातावरण ने, मुझमे जहर भर दिया,
जिससे तुमने अपना ही नुकसान कर लिया,
अब तो दिन ब दिन तुम घुटते ही जाओगे,
जो जीवन मुझमे है,वो क्या तुम "पंखा और एसी" में पाओगे?????
ये सब सुन मेरा तो दिल भर आया, ऐसा लगा जैसे हट गया हो आंखों पर से काले पर्दे का साया...
अगर हमें वही चैन, सुकून, ठंडक और शितलता पाना है,
तो मिलकर गन्दगी, प्रदूषण हर जगह से हटाना है,
वातावरण को स्वच्छ बनाकर , वही अमृत रूपी हवा चारो तरफ फैलाना हैं......
आओ मिलकर शुरुआत तो करे, कूड़ो को उनकी जगह पहुचाए....कुछ वृक्ष लगाए, माहौल को स्वच्छ बनाये...
फिर वही पहाड़ो, पेड़ो,नदियों, घाटियो से "हवा" अपनी शितलता बरसाए,
बीमारी को हमसे दूर करके, एक स्वच्छ भारत की पहचान बनाये।
आओ मिलकर शुरुआत तो करे....
Writer - Ambika Dubey
छोड़कर शीतलता इतनी घुटन सी क्यों मची है?
फिर हवा ने एक तड़प भरी ..आह.. के साथ अपना दर्द सुनाया....
जीव जंतु , पेड़ पौधे मुझपर ही टिका हर जीवन का आधार है,
शीतलता और पवित्रता ही मेरा स्वरूप, बाकी ना मेरा कोई रूप ना आकार है।
चलु थोड़ी गर्म हवा बनकर तो "लू" कहलाती हु,
हो जाओ थोड़ी तेज़ तो आंधी बन जाती हूं,
खेलते बच्चे , मुस्कुराते कवल जोड़ो के लिए सुहानी हवा,
तपती दुपहरिया में दु गर्मी से राहत, तो ठंडी हवा का झोंका कहलाती हु,
फिर क्यों मेरी पवित्रता में जहर घोल रहे हो तुम इंसान?
प्रदूषण जैसी बीमारियां देकर मुझे ,
क्यों कर रहे हो अपना नुकसान?
अब हवाओं में शीतलता नही, बीमारी महामारी घुलती जा रही हैं,
ये गाड़िया ये फैक्ट्रियां, सब मेरा अस्तित्व मिटा रही है,
मै तो पहाड़ो, पेड़ो,नदिया,घाटियो से अमृत रूपी हवा लाती थी,
जो तुम सबमे एक स्फुर्ति और चेतना जगाती थी,
अब तो तुम्हारी फैलाई गंदगी ने, तुम्हारे प्रदूषित किये हुए वातावरण ने, मुझमे जहर भर दिया,
जिससे तुमने अपना ही नुकसान कर लिया,
अब तो दिन ब दिन तुम घुटते ही जाओगे,
जो जीवन मुझमे है,वो क्या तुम "पंखा और एसी" में पाओगे?????
ये सब सुन मेरा तो दिल भर आया, ऐसा लगा जैसे हट गया हो आंखों पर से काले पर्दे का साया...
अगर हमें वही चैन, सुकून, ठंडक और शितलता पाना है,
तो मिलकर गन्दगी, प्रदूषण हर जगह से हटाना है,
वातावरण को स्वच्छ बनाकर , वही अमृत रूपी हवा चारो तरफ फैलाना हैं......
आओ मिलकर शुरुआत तो करे, कूड़ो को उनकी जगह पहुचाए....कुछ वृक्ष लगाए, माहौल को स्वच्छ बनाये...
फिर वही पहाड़ो, पेड़ो,नदियों, घाटियो से "हवा" अपनी शितलता बरसाए,
बीमारी को हमसे दूर करके, एक स्वच्छ भारत की पहचान बनाये।
आओ मिलकर शुरुआत तो करे....
Writer - Ambika Dubey
हम खुद ही प्रदूषण नियंत्रण नहीं करते.. Agar ek इन्सान को 1km भी जाना है तो वह कार या फिर बाइक से जायगा चाहे उसके घर में साइकिल हो quki साइकिल चलाने में शर्म ayagi लकिन वो दिन दूर नहीं जब साइकिल तो क्या हम पैदल भी नहीं चल paaga... हमारी okad ही क्या है हमारे होने से पर्यावरण खराब होता है पर हमारे ना होने से वो एक दम साफ़ होगा... So plz respect nature not yourself
ReplyDeleteagree , aap ne bilkul sahi kahaa .
ReplyDeleteG
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