एक बिरहन सजनी की होली
होकर खुशियों के डोली में सवार,
चली बलखाती ये रंगों की बहार,
देखो ये है होली का त्योहार।।
इन रंगों को देख मैं मन ही मन मचली बहुत,
पर जरा सा भी ना मुस्काई,
मुझे यु गुमसुम देख मेरी सखी लाल रंग मेरे क़रीब आयी,
इतराते हुए वो बोली क्यों ना खेले तू होली?
मैं आंखों में आंसू ले बोली - सुन सखी ! !!!
होली तो प्यार का त्योहार है ,
सजना और सजनी के प्यार की बहार है,
होली तो वो है जो करे राधा कृष्ण ठिठोली,
एक दूजे के गालो को रंग दे,
और कान्हा भिगोये राधा की चोली,
वही है प्यार के रंगों की होली,
लेकिन मेरे सावरिया तो है मुझे बिरहन बनाये,
होलीका के लपटो की तरह ही मुझे जलाये,
नैना निहारे रास्ता उनका बारम्बार,
ना जाने कब होगा उनका दीदार,
जिस दिन मेरे साजन आएंगे,
मुझे बाहो में भरकर मेरे दिल की प्यास बुझाएंगे,
उस दिन मेरे लिए होगी होली का त्योहार,
बरसेंगे फूल, रंग उड़ेंगे आसमानो में ,
आएगी एक नई बहार,
सुन लो सखी !!!! उसी दिन मनाऊंगी मैं ये होली का त्योहार।
अब मत छेड़ना मुझे बारम्बार, बस अब करने दो मुझे मेरे सजना का इंतज़ार,
बस होली चली वहां से कही और लूटाने रंगों का प्यार,
होकर खुशियों की डोली में सवार,
देखो यही तो है होली का त्यौहार।
अम्बिका दूबे
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