बस जिंदगी से बिछड़ने की घड़ी करीब थी,मौत दरवाजे पर डोली लिए खड़ी थी,
करीबी दोस्त और रिश्तेदार आंसू बहा रहे थे,
और मैं ज़िंदगी के साथ कुछ पुराने हिसाब किताब करने में लगी थी।
मैं ज़िन्दगी के ऊपर शिकायतें और आरोप लगा रही थी,
और वही कुछ और पल का साथ लिए ज़िन्दगी मुझपर मुस्कुरा रही थी,
मैंने उससे बहुत मिन्नतें की, थोड़े और वक़्त साथ निभाने का,
मैंने मांगा उससे थोड़े और पल सबके साथ बिताने का,
सबके साथ बैठकर हँसने मुस्कुराने का।
मैंने
कहा ज़िन्दगी से की, पूरी ज़िंदगी मै ढोती गम का बोझ रही,
अरमान और
ख्वाहिशों के पीछे दौड़ती भागती रही,
जब भी मुसीबतों और परेशानियों से तंग
आकर मैंने छोड़ना चाहा ज़िन्दगी का साथ ,
तब कुछ सपने और मेरे कुछ अपने रोक
लेते थे मुझे, थाम कर मेरा हाथ,
बहुत कुछ पाना और कमाना चाहती थी,
समय की तरह.. घड़ी के काटो के साथ भागती थी,
वक़्त ही नही मिला अपनो के साथ बैठ मुस्कुराने का,
राग ही नही मिला कोई, खुद के लिए कुछ गुनगुनाने का,
अपने लिए तो कुछ कर ही ना पायी,
बस अपनो के लिए बहुत कुछ संजोया और बहुत की कमाई,
फिर भी क्यों खुश नही मैं, क्यों और कुछ वक्त चाहती हु,
सब कुछ तो कमा लिया, फिर क्यों खाली हाथ सी महसूस करती हूं,
रुक जिंदगी !!! थोड़ा तो और दे दे साथ, कुछ अपने लिए कमा लू,
जो कि मैं ले जा सकू अपने साथ....
जिंदगी ने बड़ी तरस भरी नज़रो से मुझे देखा और दर्द भरी आह भरकर मुस्कुराई,
उसने पूछा .... क्या पाया तूने मुझ अनमोल ज़िन्दगी को पाकर, और क्या की कमाई?
कभी दिल से खुश हुई ? कभी बैठी खुद के साथ बाते करने
या खुद के साथ बैठ कभी चाय की चुस्की लगाई?
कभी
वक़्त निकाला उनके लिए जिन्हें तेरी जरूरत थी,
या कभी खुद की अंतरात्मा के
लिए कुछ कर पाई?
ख़ुशी, मुस्कुराहट, ध्यान, परोपकार, यही सब तो था मेरा
आकार,
क्या इन सबको तू कमा पायी?
चल!!!! अब वक्त नही
कुछ कमाने का, अब कोई मौका नही कुछ पाने का,
खुशिया ले जा या आँसू अब ये है
तेरे हाथ मे, मौत की डोली है दरवाजे पर कोई ना होगा तेरे साथ मे,
मैं बस तड़पकर मसलती रही हाथ , सोचती रही काश... मिल जाये ज़िन्दगी का थोड़ा और साथ...
अचानक किसी की आयी आवाज...
कितना और सोएगी अब तो जा तू जाग...
आंख
खुली तो देखा ...दरवाजे पर मौत की कोई भी ना थी डोली,
खुश हुई बहुत मैं
!!! और ज़िन्दगी को जीने ज़िन्दगी के साथ हो... ली....,
अब अपने लिए ज़िंदगी
का फ़लसफ़ा बनाऊँगी, दुसरो को खुश करके खुद भी मुस्कुराउंगी,
बैठूंगी समंदर
किनारे लहरो से बाते करने, और फूलों के साथ खिलकर मुस्कुराउंगी,
अब मैं खुलकर ज़िन्दगी जिऊंगी और लोगो को भी जीने का पाठ सिखाऊंगी।
अंबिका दूबे
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