एक छोटी सी लड़की का एक छोटा सा प्रयास
“काकी ये लो लाल
फूल का हार, माता
रानी को बहुत ही
पसंद है ये फूल”
, १० साल की मीरा… ऐसे
ही तो वो इकट्ठे
करती थी पैसे ….
मिटटी के खिलौने बनाकर
बाजार में ४ - ५ रूपये में
बेच आती थी , स्कूल जाती तो स्कूल के
सारे टीचरो को माँ के
हाथ का बना आचार
बेच आती थी और सबसे
पैसे लेकर उसे इकठ्ठा करती थी , गांव का मेला करीब
आ रहा था सब समझ
गए थे की मीरा
मेले के लिए पैसे
इकट्ठे कर रही है
, सब पूछते की …मीरा इस बार मेले
में क्या खरीदने वाली हो ? पैसे काफी इकट्ठे
कर लिए है तुमने ..मीरा
मुस्कुराकर कहती …"कुछ बहुत ख़ास”...
गांव का सबसे बड़ा
मेला , गांव के सभी लोग
मेले में आये है , मीरा के सभी दोस्त
भी आये है और सब
मीरा को ढूढ़ रहे
है , तब तक सबका
ध्यान मिठाई की दूकान के
बगल में लगी एक दूकान पर
गयी जहा ढेर सारे मिटटी के खिलौने लिए
मीरा बैठी थी , मुस्कुराते हुए .....
एक बुजुर्ग से कह रही
थी... ये ले लो
चाचा... मिटटी के गुड्डा और
गुड़िया छोटी
को बहुत भायेगा ये खुश हो
जाएगी देखकर बस ३ रुपये
का ही तो है
बड़ा आश्चर्य सा हुआ ये
बच्ची पैसे क्यों कमा रही है भगवान् का
दिया सब कुछ तो
है इसके घर में फिर
ये क्यों?????
दूसरे दिन सुबह सुबह मंदिर में फूल बेचने जा रही थी
मीरा उसे रोककर मास्टर जी ने पूछ
ही लिया बेटी तुम्हे रूपये कमाने की क्या जरुरत
है ? तुम्हारे तो ये खेलने
के दिन है , फिर ये रूपये किसके
लिए कमा रही हो ? मीरा ने मुस्कुराकर बोला
काका ये रूपये तो अपनी माँ और दादी के
लिए इकठ्ठा कर रही हु
हमारे घर में सब
कुछ है बस एक
चीज़ की कमी है उसी को पूरा करना
है और उससे मेरी
माँ और दादी बहुत
खुश होगी , मास्टर जी समझ गए
की ये अपनी माँ
दादी के लिए या
तो कोई जेवर बनवाना चाहती होगी या फिर शहर
से महंगी सारी (saree) मगवाने वाली होगी । धीरे धीरे
सारे गावों में खबर फ़ैल गयी की मीरा सारियो
और जेवरों के लिए पैसा
इकठ्ठा कर रही है .
काफी समय बीत गया फिर कुछ दिनों से मीरा कुछ
बेचते हुए दिखाई नहीं दी स्कूल के
भी सारे टीचर परेशान थे की मीरा
स्कूल भी क्यों नहीं
आ रही है ।
शाम का वक़्त था
मीरा ख़ुशी से कूदते हुए
सबके दरवाजे पर जाती और
कहती मास्टर जी मुझे जो
लाना था माँ दादी
के लिए वो ले
आई कल आप देखने
आ जाना सुबह सुबह.... इसी तरह वो गाँव के
एक एक घर को
निमंत्रित करके आ रही थी
, ना जाने वो गांव वालो
को क्या दिखने को उत्साहित थी
और गावों वाले भी तो बहुत
इच्छित थे देखने के
लिए उस चीज़ को
जिसके लिए इस १० साल
की बच्ची ने इतना कुछ
किया ,,,,,,,सुबह सुबह गांव के सारे लोग
मीरा के दरवाजे पर
पहुंच गए ये देखने
की इस बच्ची की इतनी लगन
किस चीज़ के लिए थी.
मीरा सबको लेकर अपने घर के पिछवाड़े गयी वहा ईट से कुछ
कमरा जैसा बना था सबने पुछा
की मीरा ये क्या है
??? मीरा ने मुस्कुराते हुए बोला ये शौचालय है ! शौचालय ?????
सब अचंभित रह
गए मास्टर जी गुस्से से
लाल पीले होकर बोले !!! शौचालय !! वो भी घर
में ??? इस बच्ची ने
तो गंदगी गांव में ही ला दी
, जिसके लिए हम गांव से
दूर खेत खलिहानो में जाते है वो गंदगी
गांव के अंदर !!! छी
छी!!!!!
फिर मीरा ने बोला ! नहीं
मास्टर जी! आप
गलत सोच रहे है खेत खलिहानो
में किये गए शौच से
हज़ारो बीमारिया फैलती है, सोचिये
हमारी निर्मल पवित्र हवा अपने साथ दुर्गन्ध लेकर आती है वो भी
केवल खुले खेत में शौच की वजह से
, वही शौच पर मडराने और
बैठने वाली मक्खिया आकर हमारे घर में खाद्य
पदार्थो पर बैठती है
तो सोचिये उससे कितनी बीमारिया फैलती है और शौचालय
में मल मूत्र जमीन के अंदर जाकर
नष्ट हो जाते है
जिससे कोई बीमारी और दुर्गन्ध नहीं
फैलती ,
और फिर काका हमें भी तो कितनी
परेशानी होती है , आपको पता है मेरे दादी
को रात में ठीक से दिखाई नहीं
देता फिर वो रात को
डंडे के सहारे अँधेरे
में दूर खेत में शौच के लिए जाती
है , जिससे की कितनी बार
उनके पैर में काटे
चुभ जाते है और कितनी
ही बार तो वो फिसल
कर गिर भी पड़ी है
लेकिन अब ये सब
दादी की नहीं झेलना होगा , फिर माँ !!!! माँ को भी तो
ना जाने कितनी तक़लीफ़े उठानी पड़ती है , दिन में तो वो खुले
में शौच के लिए जा
ही नहीं सकती है , क्युकी दिन में खेतो में तो चारो तरफ
लोग रहते है , मैंने अपनी माँ और दादी के
लिए एक छोटा सा
प्रयास किया है अगर आप
लोग चाह लेंगे तो गांव के
हर घर में शौचालय
होगा ,
गांव के सब लोग
समझ चुके थे, सबने मीरा
से वादा किया की हां बेटा
अब हमें घर
में शौचालय की जरुरत समझ
आ गयी है अब हम
सब अपने अपने घरो में शौचालय बनवाएंगे ।
"स्वच्छ और स्वस्थ्य गांव
की पहचान
घर घर शौचालय
हर गांव की शान"
अम्बिका दुबे
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